Saurabh Patel

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लेखनी प्रतियोगिता -01-Jun-2022 अल्फाज़ मेरे जज्बात के

शौक तो होते ही है जवानी में मुहब्बत के
जिंदगी पहले से इंजताम करके जो रखती है बगावत के

ये जिस्म कुछ भी तो नहीं,लोग यूंही पीछे पड़े रहे उस बनावट के
वो लोग ही कुछ और होते है जो दीवाने होते है शराफत के

क्यूं कर रहे हो अपने दिल से ये मुहब्बत के गुनाह 
लाले पड़ जाएंगे तुझे अपनी ही ज़मानत के

कैसे वो लोग होंगे जो मरे गए सच के लिए 
वो सबसे पसंदीदा शिकार रहे होंगे जमाने की नियत के

सब को मैं खुशमिजाज लगता हूं बस वही एक नज़र अच्छे से जानती है मेरी उदासी को 
नखरे ये दिन म दिन कितने बढ़ रहे है मेरी तबियत के

लोग मारने लगे अपनी ही बस्ती के आदमी को
ये घर नजाने कैसे इतने करीब पहुंच गए सियासत के

आदमी की हवस ने क्या क्या नहीं किया
वो दरिंदगे सीने पे बम रखकर फट गए हूरो की चाहत के

और मेरी तरह गुजार कर तो देख कुछ साल कलम के साथ 
आने वाले कही ज़माने जुकेंगे सामने तेरी लिखावट के।

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22 Comments

Shrishti pandey

02-Jun-2022 05:23 PM

Nice

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Saurabh Patel

02-Jun-2022 05:33 PM

Thank you

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सुन्दर भाव सृजन। अगीत।

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Saurabh Patel

02-Jun-2022 02:08 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Sona shayari

02-Jun-2022 12:28 PM

Bahut khub

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Saurabh Patel

02-Jun-2022 12:58 PM

Ji shukriya

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